(1)
بحار الانوار 101:52:ح 2.
(2)
بحار الانوار 110:25 ح 15.
(3)
بحار الانوار 111:52:ح 20.
(4)
بحار الانوار 112:52 ح 23.
(5)
بحار الانوار 113:52 ح 26.
(6)
بحار الانوار 113:52 ح 28.
(7)
بحار الانوار 113:52 ح 29.
(8)
بحار الانوار 114:52 ح 30.
(9)
بحار الانوار 1105:52 ح 36.
(10)
بحار الانوار 117:52 ح 39.
(13)
نهج البلاغه، خطبه ي 1.
(14)
خصال:204. در اين مورد بنگريد: توحيد الامامية:271 - 270.
(15)
بحار الانوار 142:77. ومضمون آن، به الفاظ ديگر، در: بحار
الانوار 66:11 و188:81، 464:14، 69 و195.
(16)
بحار الانوار 59:11 و49:72.
(17)
شرح غرر الحکم 552:4.
(21)
بنگريد: بحار الانوار 324 - 242:12.
(22)
خصال، صدوق 399:2:ح 108.
(23)
بحار الانوار 372:18 ومضمون آن: بحار 374:18 و105:38.
(25)
بحار 373:18 و38 و104.
(26)
بحار الانوار 114:38.
(27)
بحار 160:36 و292:37.
(29)
بحار 81:36، وهمين مضمون در: بحار 149:36، از تفسير عياشي.
(30)
تفسير قمي 390 - 389:1، بحار الانوار 170:36.
(31)
بحار الانوار 400 - 399:18.
(35)
بحار الانوار، علامه مجلسي، 273:44 و274 ح 1 بنگريد به:
احتجاج طبرسي:243 - علل الشرايع 230:1 باب 177، رقم 1 -
کمال الدين 184:2.
(36)
خصال صدوق 364:2، باب السبعه ح 58.